Monday, August 10, 2009
कालेग की यादे
जितना दूर रहा उतना ही पास रहा
हर पल अब तो कुछ ख़ास
रहा मीलो थे फासले जहन में दोस्तों का नाम रहा
चाय की चुस्की के बाद
किसी पर किसी पर बिल थोपना भी बड़ा काम रहा
छोटी छोटी बातो पर हसना
बिन बातो के गुस्सा होना भी अब स्वप्न रहा
लड़े झगडे बहुत झगडो में प्यार बेसुमार रहा
जब आया जन्म दिन किसी का
केक चहरे पर पुता उसमे भी अपना प्यार रहा
जब न होता कोई दोस्त तब
उसकी मिमिकरी कर ठहाके लगाना भी एक त्यौहार रहा
Sunday, July 26, 2009
कारगिल शहीदों को नमन
वीर कहा अपने प्राण खोता है
वो तो जन्मो-जनम के लिए अमर होता है
वो न तो रोता है
न ही सोता है
इसका लक्ष्य बस एक ही होता है
उसके हर वार से दुश्मन का सीना छल्ली होता है
जब कभी वक़्त उसे दगा देता है
उसमे भी वह शहीद होने का जशन मना लेता है
कितनी रखिया कितनी लोरिया
और एक प्यारी सी शहनाई
वो हर छन सदियों के रिश्ते निभा लेता है
( कारगिल विजय दिवस पर सहीदो को मेरी ओर से समर्पित )
(शहीदों की माँ को नमन)
कभी चिराग
कभी बुदापे की लाठी
कभी हृदय का टुकडा देकर
अपने पलकों को सी कर
शुष्क कंठ से
पीड़ा का प्याला पीकर
हसते-हसते एक माँ अनेक प्रण लेकर
फ़िर अपने लाल को बड़ी माँ की रक्षा में सरहद पर पठवाती है
ये भारत की माँ है जो अपने अन्तिम पुत्र को भी मातृभूमि की
रक्षा का पाठ सिखाती है ............ ।
(शाहियो की पत्नीयो को नमन)
कही तो अभी पहली मुलाकात हुए थी
बस नैनो में ही बात हुई थी
कही सगाई
कही हल्दी
कही अभी महेंदी का रंग ही चडा था
कही सेज पर बैठे - बैठे
सपनो को बुना था
लंबे इंतजार का प्रण लिया था
जब वो तिरंगा ओड़ आए
तब खुशी से उसने उस शवेत मगर
पवित्र निर्मल निश्छल रंग को जीवन भर के लिए चुन लिया था ................... ।
प्रश्न -जन्नत कहा होती है ?
उत्तर-
bas vahi होती है
जहा एक वीर अपने प्राण खोता है
उसके केशरिया रंग से फ़िर
शवेत रंग पुलकित होता है
जहा सगा -पराया क्या सब
सब रंग एक रंग होता है
ओर हर पानी गंगा सा निर्मल होता है
(उस ताशी को भी मेरा नमन जिसने कारगिल के शूल को देखकर भुजाओ को हरकत में लाया था
ताशी वही व्यक्ति है जिसने कारगिल में घुस पैठ की पहली ख़बर दी थी )
सावन
इस पायल की ये धुन सुन
नाचे मयूरा भी छुन-छुन
आया सावन ये मधुर गीत सुन ............ ।
आबाद रहा
सुर्ख रंग आबाद रहा
खिला जो गुलाब रहा
इर्द - गिर्द देखो थोड़ा सैलाब रहा
खुश रहा मन थोड़ा तो शूल हर बार रहा
संकीर्ण विचार भरा रहा
हरा रंग से मन डरा रहा
आई बसंत रंग केसरिया देख
क्यो मन जरा रहा
भ्रमर पुष्प पर मंडरा रहा
शीतल पवन पात सहला रहा
आया सावन फ़िर झुला डाला
शाख -शाख फ़िर बल खा रहा
आई शरद तो ठिठुरता रहा
खेतो में पिला रंग बिखरता रहा
कही जली काया
कही जल अलाव रहा .................. ।
में तिनका
कभी वक़्त रौन्द जाता है
कभी धुप सुखा जाती है
शर्दिया आती है
मेरा सम्मान फ़िर बड़ा जाती है
रोज सुबह मुझे ताज पहना जाती है
तब खड़े दरखतों की इस्या और बड़ जाती है
उनकू कुंठा उनके पात झदाती है
में क्या करू प्यारी ओश
सदा मेरे ही हिस्से आती है
कोई नाव बन जाता है
कोई जहाज़ बन जाता है
जब कोई डूबता है
तब मुझ तिनके का ही असरा
उसकी जान बचाता है
में तिनका ही सही मगर सारी खुसिया मेरे हिस्से ही आती है
Thursday, July 16, 2009
मधुर मिलन
कुछ मृदंग संग लिए
हृदय चित्त में उमंग लिए
तेरी प्यारी धानी चुनर संग लिए
आया तुझसे मिलने प्रित ऋतू संग लिए
बिता विरह अब मिलन आया
इस वियोग ने बहुत तरसाया
नभ पर अब में ही में छाया
देख मेरा प्रेम कितने प्यारे रंग लाया
अब अंग-अंग भी तेरा खिल आया
शीतल पवन का झौका लिए
तेरे केशुओ को फ़िर शहलाया
मधुर मिलन की बेला में
आशु खुशी के छलकाया
मेरी प्रियाशी धरती
में बादल तुझसे मिलाने फ़िर आया ,,,,,,,,,,,,,,।
Tuesday, June 30, 2009
क्षण -क्षण
करुण हृदय अब क्रंदन करता
वर्षा में स्पंदन करता
मेघ भी अब प्रचंड गर्जन करता
अनेक पथ के दर्शन करता
घटता बढता चंद्रमा
चकोर न अब दर्शा न करता
क्षण -क्षण क्षय करता
कण -कण टंकण करता
स्मृति की दुशाला ओड़
स्वपन में भ्रमण करता ।
करुण हृदय अब क्रंदन करता
वर्षा में वंदन करता
कुशाग्र छल से छालित करता
मन से मन मलित करता
तृस्ना को दलित करता
न ईश को अब नमन करता
जिज्ञाषा को पिपाशा से भगित करता
निम्न सा वजन तुला करता
मूल्य अधिकाधिक में अदा करता ।
(एक रात के बाद )
भास्कर अब मेरा पैमाना करता
किरणों की डोर फेक स्वयं को अपमानित करता
आठो पहर अब में रोशन करता
वो अपनी दुपहरिया लेकर सिर्फ़
मेरी परछाई को सीमित करता
करुण हृदय अब न क्रंदन करता
वर्षा को अब में चंदन करता
मेघ की गर्जना संग अब नृत्य करता
एक पथ प्रिशिद्धि का उसको में सफल करता
क्षण -क्षण अब तय करता
कण -कण अब प्रकट करता
स्मृति दुशाला संग लिए नए युग का सृजन करता
मन से मन निर्मल करता
तृस्ना को छोड़ ईश को नमन करता
जिज्ञासा को घन कर
मन केंद्रित करता
में अब लक्ष्य को सहस्त्र बार भेदित करता।
शहीदों को समर्पित
न दौलत अता करना मौला
न शोहरत अता करना मौला
बस इतना अता करना मौला
मुह में गंगा हो हाथो में तिरंगा हो मौला ............
(मेरे मित्र द्वारा रचित चंद लाइने )
Sunday, June 21, 2009
नमी
और में मै उसकी बाते ध्यान से सुन रहा था वैसे ये किस्सा मै कई बार सुन चुका था फ़िर भी मै ने उसे सुन
रहा था जब उसका दर्द नही देखा गया तो मै ने कहा
"कुछ बाते दिल में ही रहने दो
नही तो ये बेचारा
और - अकेला - और- अकेला
हो जाएगा "
इसके बाद उसने कहा टीक है अब मै उस लड़की का नाम कभी नही लूँगा
मगर दो दिन के बाद फ़िर वही हुआ फ़िर वहीईईईई ,,,,,,,,,,,,,,
मेरे दोस्त सुजीत को समर्पित
आज बूंदों को नम देखा
बरसे बदरा खुशी से
इनकी खुशी में भी गम देखा
इनका सफर बहुत लंबा था
थकान को देखा
तो नम देखा
बूंदों को जमीन पर गिरते देखा
हर हिस्से को बिखरते देखा
जमीन ने सोखा
हर कतरा बड़े प्यार से
यार उसकी सौंधी खुसबू को भी मैंने देखा
यादो को भुलाते देखा
धुएं को उडाते देखा
बड़ते पैमाने घटता होश
वो फ़िर था खामोश
उसकी बंद जुबान से
उसके प्यार का नाम
हर बार दुहराते देखा
सुबह की धुप से
शाम की छुअन तक
नम आँखों को धुप में सुखाते देखा
तारो को गिनते
चाँद से बातें करते
ख्वाब में भी बडबडाते देखा
ये मेरे दोस्त का प्यार है
जब भी दीखता है
नम ही दीखता है
Sunday, May 31, 2009
भूख का रास्ता
हर राह अब एक ही और जाती है
हर राहअब एक ही ओर जाती है
भूख प्यास पर सिमटी आती है
चौंधियाती है मेरी आँखे एक बड़ी सी गाड़ी को देखकर
पुनःदेख मेरे टूटे छोटे घर को ठंडी हो जाती है
कुछ बच्चो की तरह मेरे ख्वाब में भी
कुछ परिया आती है
हालत को मेरे देखकर वो भी मुह चिडा कर चली जाती है
शायद मेरी गन्दी बस्ती बॉस उसे भी आती है
मेरे दरवाजे पर बहुत से लोग आते है
कुछ विदेशी कुछ देसी फोटो खीचते -खिचवाते है
थोड़ा इनाम थोड़ा पैसा थोड़ा शोहरत पाते है
पर में उसी गंदे रस्ते पर
उसी तरह बैठा रह जाता हु
की कोई आज फिर आयेगा और
फोटो खिचवाने के बहाने कुछ पैसा या खाना दे जाएगा ...............
उलझने
बातें होती है
मुलाकाते होती है
पर तौफिक नही होती
एक लट हमेसा ही होती है
रूबरू होने पर
परदा न हो ये बात नही होती
अनजानी कशिश अक्सर होती है
एक छोर तो होता है
पर दूसरी नही होती
आंखे बोलती है उसकी
मेरी जुबान में भी आवाज नही होती
घटाओ की छुअन भी उन्हें मह्सुश होती है
यहाँ बरसात होती है
पर उन्हें परवाह नही होती
हमें तो कोई याद नही करता
पर तुम्हारी हिचकिया हमसे ही
गुलज़ार होती है
कुछ चीजे तो तुमने ही चुराई है
मगर ये कहने की बात नही होती
तुम्हारे चौखट पे ही बिखर जाती है
ओस की बुँदे सारी
मेरे दर ...
हरियाली भी सुख गई है
पर सीचने की बात भी नही होती
तारे अब भी उलझे रहते है
चाँद को लेकर
हमसे भी पुछे ..
ये बातें साफ नही होती
प्यार एकतरफा ही हो
तो अधिकार की बात नही होती
चलो कुछ बाते खुदा पर छोडे
हमसे और बातें यार नही होती . ......
Wednesday, May 20, 2009
व्यथा -मेरे देश की
बादलो ने भी ली
भरपूर अंगडाई
धान की कोपलों ने भी
अपनी चुनर लहराई
तभी धरती घबराई
माथे पर शिलवते नजर आई
सुखा पड़ा
बाद आ गई
नेताओ ने
ऋन -ऋण लिया
धन धन हुआ और
धन बाद गया
मैंने ऋण लिया
जमीन का एक टुकडा
और घाट गया
सुखा पड़ा
बाद आ गई
अंधी आई
पेड़ उखड़े
बटवारे में खेत के टुकड़े
सुखा पड़ा
बाद आ गई
सूरज ढला
रात आ गई
लुटेरो ने लुटा
धन-आबरू
गरीब जगह -जगह
हुआ बेआबरू
सुखा पड़ा
बाद आ गई
रुखा -सुखा न बचा
भूषा भूषा न बचा
हुआ घोटाला
चार गया चारा
पड़ गया सुखा
बाद आ गई
रोटी मांगी
मन्दिर मिला
तलवार चली
बोली मस्जिद गिरा
बच्चा भूखा -प्यासा ही मारा
न कब्र मिली न शमसान
चोराहे पर शिनाख्त को पड़ा
सुखा पड़ गया
बाद आ गई
गोली चली शहीद हुआ
कही मिली परम वीरता
कही तरक्की
मरने वाला किस ओर का था
कौन जाने
मर गई मानवता ये सब जाने
सुखा पड़ा
बाद आ गई
उसने दिया अस्वाशन
जान आ गई
लगा बरसात आ गई
बादल गरजे बरसे मुसलाधार
चुनाव ख़त्म हुआ
सुख पड़ा
बाद आ गई
बम फूटा
लहू बहा
कभी उस पार
कभी इस पार
दोनों ने कहा
बार -बार
पड़ोसी है
पड़ोसी है
आइना देखा तो पता चला
उस पार
उसका साया था
इस पार
हमारा प्रतिबिम्ब
सुखा पड़ गया
बाद आ गई
तस्वीर छपी
हैसियत बड़ी
देखा उसे
घड़ी -घड़ी
उसे मिला महंगा विज्ञापन
मुझे महँगी दवाई
सुखा पड़ गया
Monday, March 30, 2009
आम आदमी
हर कतार आदमी
गली चोराहो पर फिरता
गड्डो में गिरता आम आदमी
आँखों में सपने
कंधो पर जिम्मेदारी
पर बारी -बारी किसी न किसी
हादसे का शिकार आदमी आम आदमी
हाथो की हथेलियो में
चन्द रंगीन कागज के टुकड़े लिए
घर पंहुचा
घर पंहुचा
फिर निकलेगा घर से
ये आदमी
आम आदमी
हर कंधे पर बैठी
एक सवारी
सवार हुआ नेता
खच्चद बना आम आदमी
है भिखारी पर बनता है
दानवीर
हर पाच वर्ष में लुटता है
खुशी से बार -बार आदमी
आम आदमी
बिकता है इसके सामने सब कुछ
विक्रेता बना खाखी
खादी खरीदार
बना ये गाँधी का
बन्दर आम आदमी
इतना भी लाचार नही है
ये आदमी
डूबा रहता है
अक्सर किसी की झील सी आँखों में
बाड़ में डूबा तो एतराज
ये आम आदमी
Tuesday, March 17, 2009
अधुरा रंग
सब गालो को रंगा,
पर एक प्यारा चेहरा छुट गया
एक हाथ में रंग भरा था,
दूजे में गुलाल
पर तेरे घर का खुला दरवाजा देखकर ,
सारा हौसला टूट गया
सब रंगों से खेला मैंने एक प्यरा रंग छुट गया
सभी गुलाब बागो में थे ,
एक जाने कैसे टूट गया
हर जगह बरसे थे रंग,
तेरा घर कैसे छुट गया
वो तो सबसे पहले था ,
फ़िर कैसे छुट गया
सब रंगों से खेला मैंने एक प्यरा रंग छुट गया
लोग खड़े थे ,
बेशर्म बड़े थे
पर तेरे हाथो से परदा ,
कैसे छुट गया
मेरे रंग में रंगने का ,
सपना तेरा टूट गया
सब रंगों से खेला मैंने एक प्यरा रंग छुट गया
मुझमे सब्र बड़ा था ,
एक आहट को खड़ा था
दिन ढलने से पहले ,
हौसला तेरा कैसे टूट गया
रंग देता सारा आकाश
पर एक छोटा सा बादल देखकर ,
मेरा चाँद कैसे टूट गया
सब रंगों से खेला मैंने एक प्यरा रंग छुट गया...........................
Thursday, March 12, 2009
आज मै
और कैम्पस में दूसरा कोई नही था दूसरा कोई था भी तो वो गार्ड था / में बैठा - बैठा यूनिवर्सिटी की बिल्डिंग को देख रहा था और आज मुझे यह बिल्डिंग बहुत खुबसूरत लग रही थी उसी समय मेरे मन में कुछ पंक्तिया आई वो इस प्रकार है ...........
आज मैं ,
तेरे साये बैठा,
अपनी परछाई को ढुडता हूँ ,
तेरे संग जुड़े थे जितने रिश्ते ,
अब में उन्हें एक -एक कर तोड़ता हूँ ,
अब में किसी नए शहर की ओर ,
अपना रुख मोड़ता हूँ
आज मैं ,
तेरे साये में बैठा ,
अपने आशुओ को मोतियो सा जोड़ता हूँ ,
मेघ को देकर कुछ बुँदे उधार ,
किसी प्यासे खेत को सिचता हूँ ,
ओर एक बूंद शीप में गिराकर ,
मोत्ती बनाने का कार्य शौपता हूँ
आज में ,
तेरे साये में बैठा ,
तेरे रूप को निहारता हूँ ,
तू जैसे है एक सुंदर दुल्हन ,
तुझे विरह में छोड़ मैं ,
अब रण में लड़ने जाता हूँ
आज मैं ,
तेरे साये में बैठा ,
कुछ पन्नो को पलटाता हूँ ,
सबमे ही विराम लगे है ,
नए अध्याय के आरम्भ लगे है ,
चलो -चलो अब शब्द भी कहते है ,
नए उपन्यास के आरम्भ लगे है
आज मैं ,
तेरे साये में बैठा ,
अपनी बाहे फैलता हु ,
ऊपर नील गगन है उसमे ,
मन को लहराता हूँ उडाता हूँ ,
बस एक प्यारा सा आशियाँ , अब दुंडता हूँ
आज मैं ,
तेरे साये में बैठा ,
अपनी परछाई दुंडता हूँ !!!!!
{इस में बहुत साडी त्रुटी है उसके लिए कृपया माफ़ करिए }
Friday, March 6, 2009
मेरे संग चल
टेडी मंदी पगडंडी पर खुशियो की शैर कराऊ
बिन ट्राफिक सिग्नल के हर राह दिखाऊ
एक छोटा सा पनघट और पानी भरती शाखियो का प्यार दिखाऊ
कभी मेरे संग चल तुझे अपना गावँ दिखाऊ
एक छोटा सा पोखरा और उसमे छलांग लगाते बच्चो का खिलखिलाता चेहरा दिखालाऊ
सावन का मधुर गीत और झुला झूलती युवतियो की अठखेलिया दिखालाऊ
शहर कभी मेरे संग चल तुझे अपना गावँ दिखाऊ
घर - घर में एक बूडा बरगद का पेड़ दिखाऊ
इसके साये में बैठे ढेर सारे रिस्तो का संसार दिखाऊ
कच्चे धागे से बंधे मजबूत रिस्तो का प्यार दिखाऊ
शहर कभी मेरे संग चल तुझे अपना गावँ दिखाऊ
तुने तो पहन रखी है
नई फटी जींस शौक से
चल तुझे रफू की पैंट एक मासूम बच्चे की दिखाऊ
शहर तेरे द्वारे तो अब बारात भी नही आती है
वो भी अब छत पर सिमटी जाती है
चल तुझे एक छोटी सी माडिया के द्वारे भी आती बड़ी बारात दिखाऊ
शहर कभी मेरे संग चल तुझे अपना गावँ दिखाऊ
तेरे घर की लड़कियों का परिधान भी सिमटा जाता है
कभी घुटनों से ऊपर और दुपट्टा मनो गायब नजर आता है
धुप हो या ना हो पर एक छाता अक्सर नजर आता है
चल तुझे पुराने मगर पुरे परिधान दिखाऊ
सर पर आँचल और घूँघट का संस्कार दिखाऊ
और कड़ी धुप में भी खेत में काम करती सावरी गोरी दिखाऊ
शहर कभी मेरे संग चल तुझे अपना गावँ दिखाऊ
शहर कभी मेरे संग चल तुझे अपना गावँ दिखाऊ .............