कभी वक़्त रौन्द जाता है
कभी धुप सुखा जाती है
शर्दिया आती है
मेरा सम्मान फ़िर बड़ा जाती है
रोज सुबह मुझे ताज पहना जाती है
तब खड़े दरखतों की इस्या और बड़ जाती है
उनकू कुंठा उनके पात झदाती है
में क्या करू प्यारी ओश
सदा मेरे ही हिस्से आती है
कोई नाव बन जाता है
कोई जहाज़ बन जाता है
जब कोई डूबता है
तब मुझ तिनके का ही असरा
उसकी जान बचाता है
में तिनका ही सही मगर सारी खुसिया मेरे हिस्से ही आती है
No comments:
Post a Comment