सुर्ख रंग आबाद रहा
खिला जो गुलाब रहा
इर्द - गिर्द देखो थोड़ा सैलाब रहा
खुश रहा मन थोड़ा तो शूल हर बार रहा
संकीर्ण विचार भरा रहा
हरा रंग से मन डरा रहा
आई बसंत रंग केसरिया देख
क्यो मन जरा रहा
भ्रमर पुष्प पर मंडरा रहा
शीतल पवन पात सहला रहा
आया सावन फ़िर झुला डाला
शाख -शाख फ़िर बल खा रहा
आई शरद तो ठिठुरता रहा
खेतो में पिला रंग बिखरता रहा
कही जली काया
कही जल अलाव रहा .................. ।
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