Wednesday, June 28, 2017

#AngryMan

फिर रुख दरियाओं का बदलूँगा
जब मन से बरस के निकालूँगा

fir rukha dariyaon ka  badalunga
jab man se baras ke nikalunga

मन कुमार (मनोज कुमार)
Manoj Kumar

Sunday, June 18, 2017

Father's day

Ek pedh jo
Beprwah khada tha
dhoop ki chinta se door
Jid me magroor
Ghonsale ki parwah me
Wo bas khada tha

एक पेड़ जो
बेपरवाह खड़ा था
धूप की चिंता से दूर
ज़िद में मगरूर
घोंसले की परवाह में
वो बस खड़ा था

            मन कुमार ( मनोज कुमार)

Friday, June 9, 2017

Meri Maati (मेरी माटी)

एक माटी भीगे क्यों है
कोई माली सींचे क्यों है
गीली ज़मीन तर बतर
मन इस कदर क्यों है
भीगता नहीं दिल
इस कदर गेरूआ क्यों है
छूटता नहीं रंग
अंग-ढंग  फूहड़ सा क्यों है
लंबा सफर ख्वाब का
करवट का मोड़ इतना छोटा क्यों है
बड़ा रास्ता छोटा वास्ता
घर छिटक कर
दूर जाता क्यों है
इस बड़ी सी दुनिया में
मेरी माटी भीगे क्यों है

                             मन कुमार (मनोज कुमार)

Saturday, October 4, 2014

man gaagar- saagar

चंद बुँदे फिर छलका दे
कुछ करवट मौसम की बदला  दे
थोड़ा भी खरा ना हो
हो  मीठा-मीठा
सा  अमृत छलका दे
या थोड़ा तो मेरा मन बहला दे
मेरे गागर में थोड़ा सा सागर छलका दे
सागर छलका दे
मै दून्डू यहाँ वहा गलियारों में
पूजू पहाड़ों और मीनारों में
बैठा हु मै किनारों में थोड़ा तो
मेरे गागर में सागर छलका दे
भक्ति भूला, राग भूला
मै तो  विधान भूला
अब एक मंत्र बतला दे
मेरे गागर में सागर​
फिर छलका दे  


   मन कुमार (मनोज कुमार)

Wednesday, April 9, 2014

ध्यान

रात जब छत पर टहल रहे थे
सोचा की चॉद की
खूबसूरती पर कुछ लिखा जाय
तो हुआ ये की
चॉद को घूरने लगे
घूरते-२ चॉद अब बड़ा लगने लगा
फिर आधा
फिर क्या चौक गए
अब तो दाग भी दिखने लगे
तभी एक  हवाई जहाज अपनी लाईट
चालू किए गुजर रहा था
अब तो हद हो गई
उस हवाई जहाज
की एअर होस्टेज का ध्यान आया
तो पते की बात ये है
योग करना चािहए
योग से ध्यान लगा रहता हैl

Wednesday, April 2, 2014

जाग

दौड़ भाग
ऊचाई पर बैठा काग
बेसूरा हुआ राग
ठगे कौन ठाग
बड़े बड़े हैं दाग
राजनीति के भाग
पेट में जलें हैं आग
ये कौन सी चाल
लोकतंत के बाग में
बाघ घुस गये जनाब....जाग जागl

Tuesday, April 1, 2014

कभी

कभी...
अहसास जब चमक रहे थें
और जो कतार लगी थी
समय के साथ
आगे बड़ने की
जुगनुओं की भाति
अथाह काले सागर से
निकल आने के लिए
एक पर्व सा
उल्लास था
बस एक छलावा था
रात को रौशन करने के लिए
सुबह के गुबार के लिए.