चंद बुँदे फिर छलका दे
कुछ करवट मौसम की बदला दे
थोड़ा भी खरा ना हो
हो मीठा-मीठा
सा अमृत छलका दे
या थोड़ा तो मेरा मन बहला दे
मेरे गागर में थोड़ा सा सागर
छलका दे
सागर छलका दे
मै दून्डू यहाँ वहा
गलियारों में
पूजू पहाड़ों और मीनारों में
बैठा हु मै किनारों में
थोड़ा तो
मेरे गागर में सागर छलका दे
भक्ति भूला, राग भूला
मै तो विधान भूला
अब एक मंत्र बतला दे
मेरे गागर में सागर
फिर छलका दे
मन कुमार (मनोज कुमार)