Sunday, July 26, 2009

कारगिल शहीदों को नमन

(शहीदों को नमन)
वीर कहा अपने प्राण खोता है
वो तो जन्मो-जनम के लिए अमर होता है
वो न तो रोता है
न ही सोता है
इसका लक्ष्य बस एक ही होता है
उसके हर वार से दुश्मन का सीना छल्ली होता है
जब कभी वक़्त उसे दगा देता है
उसमे भी वह शहीद होने का जशन मना लेता है
कितनी रखिया कितनी लोरिया
और एक प्यारी सी शहनाई
वो हर छन सदियों के रिश्ते निभा लेता है
( कारगिल विजय दिवस पर सहीदो को मेरी ओर से समर्पित )

(शहीदों की माँ को नमन)
कभी चिराग
कभी बुदापे की लाठी
कभी हृदय का टुकडा देकर
अपने पलकों को सी कर
शुष्क कंठ से
पीड़ा का प्याला पीकर
हसते-हसते एक माँ अनेक प्रण लेकर
फ़िर अपने लाल को बड़ी माँ की रक्षा में सरहद पर पठवाती है
ये भारत की माँ है जो अपने अन्तिम पुत्र को भी मातृभूमि की
रक्षा का पाठ सिखाती है ............ ।

(शाहियो की पत्नीयो को नमन)
कही तो अभी पहली मुलाकात हुए थी
बस नैनो में ही बात हुई थी
कही सगाई
कही हल्दी
कही अभी महेंदी का रंग ही चडा था
कही सेज पर बैठे - बैठे
सपनो को बुना था
लंबे इंतजार का प्रण लिया था
जब वो तिरंगा ओड़ आए
तब खुशी से उसने उस शवेत मगर
पवित्र निर्मल निश्छल रंग को जीवन भर के लिए चुन लिया था ................... ।

प्रश्न -जन्नत कहा होती है ?
उत्तर-
bas vahi होती है
जहा एक वीर अपने प्राण खोता है
उसके केशरिया रंग से फ़िर
शवेत रंग पुलकित होता है
जहा सगा -पराया क्या सब
सब रंग एक रंग होता है
ओर हर पानी गंगा सा निर्मल होता है

(उस ताशी को भी मेरा नमन जिसने कारगिल के शूल को देखकर भुजाओ को हरकत में लाया था
ताशी वही व्यक्ति है जिसने कारगिल में घुस पैठ की पहली ख़बर दी थी )

सावन

बुँदे बरसे रुनझुन -रुनझुन
इस पायल की ये धुन सुन
नाचे मयूरा भी छुन-छुन
आया सावन ये मधुर गीत सुन ............ ।

आबाद रहा

सुर्ख रंग आबाद रहा

खिला जो गुलाब रहा

इर्द - गिर्द देखो थोड़ा सैलाब रहा

खुश रहा मन थोड़ा तो शूल हर बार रहा

संकीर्ण विचार भरा रहा

हरा रंग से मन डरा रहा

आई बसंत रंग केसरिया देख

क्यो मन जरा रहा

भ्रमर पुष्प पर मंडरा रहा

शीतल पवन पात सहला रहा

आया सावन फ़िर झुला डाला

शाख -शाख फ़िर बल खा रहा

आई शरद तो ठिठुरता रहा

खेतो में पिला रंग बिखरता रहा

कही जली काया

कही जल अलाव रहा .................. ।

में तिनका

कभी वक़्त रौन्द जाता है

कभी धुप सुखा जाती है

शर्दिया आती है

मेरा सम्मान फ़िर बड़ा जाती है

रोज सुबह मुझे ताज पहना जाती है

तब खड़े दरखतों की इस्या और बड़ जाती है

उनकू कुंठा उनके पात झदाती है

में क्या करू प्यारी ओश

सदा मेरे ही हिस्से आती है

कोई नाव बन जाता है

कोई जहाज़ बन जाता है

जब कोई डूबता है

तब मुझ तिनके का ही असरा

उसकी जान बचाता है

में तिनका ही सही मगर सारी खुसिया मेरे हिस्से ही आती है

Thursday, July 16, 2009

मधुर मिलन

कुछ मृदंग संग लिए

हृदय चित्त में उमंग लिए

तेरी प्यारी धानी चुनर संग लिए

आया तुझसे मिलने प्रित ऋतू संग लिए

बिता विरह अब मिलन आया

इस वियोग ने बहुत तरसाया

नभ पर अब में ही में छाया

देख मेरा प्रेम कितने प्यारे रंग लाया

अब अंग-अंग भी तेरा खिल आया

शीतल पवन का झौका लिए

तेरे केशुओ को फ़िर शहलाया

मधुर मिलन की बेला में

आशु खुशी के छलकाया

मेरी प्रियाशी धरती

में बादल तुझसे मिलाने फ़िर आया ,,,,,,,,,,,,,,।