Sunday, May 31, 2009

उलझने

चहरे की शिकन उन्हें मह्सुश नही होती
बातें होती है
मुलाकाते होती है
पर तौफिक नही होती


एक लट हमेसा ही होती है
रूबरू होने पर
परदा न हो ये बात नही होती
अनजानी कशिश अक्सर होती है
एक छोर तो होता है
पर दूसरी नही होती


आंखे बोलती है उसकी
मेरी जुबान में भी आवाज नही होती
घटाओ की छुअन भी उन्हें मह्सुश होती है
यहाँ बरसात होती है
पर उन्हें परवाह नही होती


हमें तो कोई याद नही करता
पर तुम्हारी हिचकिया हमसे ही
गुलज़ार होती है
कुछ चीजे तो तुमने ही चुराई है
मगर ये कहने की बात नही होती

तुम्हारे चौखट पे ही बिखर जाती है
ओस की बुँदे सारी
मेरे दर ...
हरियाली भी सुख गई है
पर सीचने की बात भी नही होती

तारे अब भी उलझे रहते है
चाँद को लेकर
हमसे भी पुछे ..
ये बातें साफ नही होती
प्यार एकतरफा ही हो
तो अधिकार की बात नही होती
चलो कुछ बाते खुदा पर छोडे
हमसे और बातें यार नही होती . ......






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