Wednesday, May 20, 2009

व्यथा -मेरे देश की

खेती शौख से लगाई
बादलो ने भी ली
भरपूर अंगडाई
धान की कोपलों ने भी
अपनी चुनर लहराई
तभी धरती घबराई
माथे पर शिलवते नजर आई
सुखा पड़ा
बाद आ गई

नेताओ ने
ऋन -ऋण लिया
धन धन हुआ और
धन बाद गया
मैंने ऋण लिया
जमीन का एक टुकडा
और घाट गया
सुखा पड़ा
बाद आ गई


अंधी आई
पेड़ उखड़े
बटवारे में खेत के टुकड़े
सुखा पड़ा
बाद आ गई


सूरज ढला
रात आ गई
लुटेरो ने लुटा
धन-आबरू
गरीब जगह -जगह
हुआ बेआबरू
सुखा पड़ा
बाद आ गई

रुखा -सुखा न बचा
भूषा भूषा न बचा
हुआ घोटाला
चार गया चारा
पड़ गया सुखा
बाद आ गई


रोटी मांगी
मन्दिर मिला
तलवार चली
बोली मस्जिद गिरा
बच्चा भूखा -प्यासा ही मारा
न कब्र मिली न शमसान
चोराहे पर शिनाख्त को पड़ा
सुखा पड़ गया
बाद आ गई


गोली चली शहीद हुआ
कही मिली परम वीरता
कही तरक्की
मरने वाला किस ओर का था
कौन जाने
मर गई मानवता ये सब जाने
सुखा पड़ा
बाद आ गई

उसने दिया अस्वाशन
जान आ गई
लगा बरसात आ गई
बादल गरजे बरसे मुसलाधार
चुनाव ख़त्म हुआ
सुख पड़ा
बाद आ गई

बम फूटा
लहू बहा
कभी उस पार
कभी इस पार
दोनों ने कहा
बार -बार
पड़ोसी है
पड़ोसी है
आइना देखा तो पता चला
उस पार
उसका साया था
इस पार
हमारा प्रतिबिम्ब
सुखा पड़ गया
बाद आ गई


तस्वीर छपी
हैसियत बड़ी
देखा उसे
घड़ी -घड़ी
उसे मिला महंगा विज्ञापन
मुझे महँगी दवाई
सुखा पड़ गया

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