Friday, March 6, 2009

मेरे संग चल

शहर कभी मेरे संग चल तुझे अपना गावँ दिखाऊ
टेडी मंदी पगडंडी पर खुशियो की शैर कराऊ
बिन ट्राफिक सिग्नल के हर राह दिखाऊ
एक छोटा सा पनघट और पानी भरती शाखियो का प्यार दिखाऊ

कभी मेरे संग चल तुझे अपना गावँ दिखाऊ
एक छोटा सा पोखरा और उसमे छलांग लगाते बच्चो का खिलखिलाता चेहरा दिखालाऊ
सावन का मधुर गीत और झुला झूलती युवतियो की अठखेलिया दिखालाऊ

शहर कभी मेरे संग चल तुझे अपना गावँ दिखाऊ
घर - घर में एक बूडा बरगद का पेड़ दिखाऊ
इसके साये में बैठे ढेर सारे रिस्तो का संसार दिखाऊ
कच्चे धागे से बंधे मजबूत रिस्तो का प्यार दिखाऊ

शहर कभी मेरे संग चल तुझे अपना गावँ दिखाऊ
तुने तो पहन रखी है
नई फटी जींस शौक से
चल तुझे रफू की पैंट एक मासूम बच्चे की दिखाऊ
शहर तेरे द्वारे तो अब बारात भी नही आती है
वो भी अब छत पर सिमटी जाती है
चल तुझे एक छोटी सी माडिया के द्वारे भी आती बड़ी बारात दिखाऊ

शहर कभी मेरे संग चल तुझे अपना गावँ दिखाऊ
तेरे घर की लड़कियों का परिधान भी सिमटा जाता है
कभी घुटनों से ऊपर और दुपट्टा मनो गायब नजर आता है
धुप हो या ना हो पर एक छाता अक्सर नजर आता है
चल तुझे पुराने मगर पुरे परिधान दिखाऊ
सर पर आँचल और घूँघट का संस्कार दिखाऊ
और कड़ी धुप में भी खेत में काम करती सावरी गोरी दिखाऊ
शहर कभी मेरे संग चल तुझे अपना गावँ दिखाऊ

शहर कभी मेरे संग चल तुझे अपना गावँ दिखाऊ .............

2 comments:

  1. very nice lines...
    bahut badioya kavita likhi hai...
    congratulations for new blog and this poetry...
    contionue to explore ur talent:-)

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  2. theme of poetry is very niceand symbols are very living but it seems like writen in hurry some grmmetical errors are also plz do some edit

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