Tuesday, March 17, 2009

अधुरा रंग

सब रंगों से खेला मैंने एक प्यरा रंग छुट गया
सब गालो को रंगा,
पर एक प्यारा चेहरा छुट गया
एक हाथ में रंग भरा था,
दूजे में गुलाल
पर तेरे घर का खुला दरवाजा देखकर ,
सारा हौसला टूट गया

सब रंगों से खेला मैंने एक प्यरा रंग छुट गया
सभी गुलाब बागो में थे ,
एक जाने कैसे टूट गया
हर जगह बरसे थे रंग,
तेरा घर कैसे छुट गया
वो तो सबसे पहले था ,
फ़िर कैसे छुट गया

सब रंगों से खेला मैंने एक प्यरा रंग छुट गया
लोग खड़े थे ,
बेशर्म बड़े थे
पर तेरे हाथो से परदा ,
कैसे छुट गया
मेरे रंग में रंगने का ,
सपना तेरा टूट गया

सब रंगों से खेला मैंने एक प्यरा रंग छुट गया
मुझमे सब्र बड़ा था ,
एक आहट को खड़ा था
दिन ढलने से पहले ,
हौसला तेरा कैसे टूट गया
रंग देता सारा आकाश
पर एक छोटा सा बादल देखकर ,
मेरा चाँद कैसे टूट गया
सब रंगों से खेला मैंने एक प्यरा रंग छुट गया...........................

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