अविरल जीवन बहता रहता
पानी ही रहता
पड़ाव -पड़ाव पर
बांध बने है
थम कर भी
कुछ न कहता
नाली बना नलकूप बना बना ताल
चाल रहा सावन-भादो में
वाष्प बना
काल-काल- ग्रीष्म में
अविरल ही रहता
मेघ बन खेत खलियानों में
एक माटी की गगरी में
ठहर कंठ तर तरह तृप्त करता
रहता जल बहता रहता
जीवन जीत
जीतता ही रहता
छोटे-छोटे पैदानो पर
मन जीतता
मानस करता
अविरल जीवन बहता रहता
अविरल जीवन...................!
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