कभी...
अहसास जब चमक रहे थें
और जो कतार लगी थी
समय के साथ
आगे बड़ने की
जुगनुओं की भाति
अथाह काले सागर से
निकल आने के लिए
एक पर्व सा
उल्लास था
बस एक छलावा था
रात को रौशन करने के लिए
सुबह के गुबार के लिए.
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